दोस्तों आज झगड़ा होना घर घर की कहानी हो चुकी है। किसी के पास भी पेशेंस नाम की चीज नही है। थोड़ी सी बात पर सबके सामने ego आ जाता है। जब बीच में ego आ जाए और झगड़ा न हो ऐसा तो हो ही नही सकता। और खास कर जब मिया बीबी के बीच में ego आ जाए तो समझ लीजिए युद्ध का बिगुल बज गया है। ऐसा नही की सभी पति पत्नी ऐसा करते है लेकिन ज्यादातर के बीच झगड़ा होने का कारण ही ego रहता है।
"जीवन में यह कला भी आजमानी चाहिए कि
जब लड़ाई अपनो से हो तब खुद को हार भी जाना चाहिए।"
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जब घर में 4 सदस्य होंगे तो यह संभव है किसी भी बात या मुद्दे पर सबकी राय एक न हो। मतभेद होना कोई बड़ी बात नहीं है। लेकिन यही मतभेद मनभेद का रूप लेकर झगड़े का रूप धारण कर लें तो बात फिर चिंताजनक हो जाती है। अक्सर देखने में आता है कि कई घरों में न चाहते हुए भी अक्सर लड़ाई-झगड़े होते रहते हैं। ये झगड़ा पति-पत्नी, सास-बहू, पिता-पुत्र या फिर भाई-भाई के बीच भी हो सकता है। आप को बता दे कि सिर्फ घरेलू झगड़े के कारण कई लोगों को मानसिक तनाव की समस्या से भी गुजरना पड़ता है। कई लोग झगड़े की वजह से गंभीर बीमारी से भी ग्रसित हो जाते है।
आखिर परिवार के बीच झगड़ा होने का कारण क्या होता है । अगर बारीकी से देखे तो अधिकांश परिवारों में झगड़ा का मात्र कारण है जैसे कि-
• एक दूसरे को ठीक से ना समझ पाना।
• एक दूसरे के feelings को न समझना।
• उनके बीच में ego का होना।
• पैसे की कमी का होना।
• आपसी रिश्तों में दूरियां हो जाना।
• रिश्तों में अपनापन का न होना।
• ज्यादा चतुराई का होना।
• आलसी प्रवृति का होना।
दोस्तों ऐसा नहीं है की इनके अलावा कोई और कारण नही हो सकता, लेकिन देखा जाय तो सबसे ज्यादा यही कारण होते है। यदि किसी परिवार में झगड़ा चल रहा है तो इनमे से जरूर कोई न कोई एक कारण पक्का होगा। जब हमे झगड़े की जड़ मालूम हो गई तो फिर उस झगड़े से कैसे छुटकारा पाए, इसका भी हल आपको ही निकालना होगा।
याद रखिए दुनिया में हर समस्या का हल है, लेकिन यदि शांति से समस्या का हल निकाला जाए तो। थोड़ी सी नरमी दिखा कर , थोड़ा सॉरी बोलकर, पैसे कम खर्च कर , अपनो की भावनाओ को समझ कर परिवार में होने वाले झगड़ों को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
दोस्तों ये बाते जितना कहना आसान है उतना ही अपने ऊपर लागू करना बहुत मुश्किल भी है। ego जब हमारे अंदर आ जाता है तो हमे सामने वाले की अच्छाईयां नजर ही नहीं आती। उसे अपना काम ही सबसे अच्छा लगता है । न किसी की सुनता है और न ही किसी को सुनने देता है। सॉरी पहले कहना तो जैसे सीखा ही नहीं होता है। लेकिन एक कहावत है की रस्सी के लगातार रगड़ से भी लोहे या पत्थर को काट देती है ठीक उसी तरह से कोशिश करने से इसके ऊपर भी कंट्रोल पाया जा सकता है।
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जैसे कभी ताली एक हाथ से नही बजती है। वैसे ही झगड़ा भी कभी एक व्यक्ति के चाहने से नही होता है। हमेशा दूसरे पक्ष की भी गलती जरूर होती है। चाहे थोड़ी ही क्यों न हो। अगर एक गुस्सा है या ego वाला है तो दूसरे को वहा पर नरमी दिखानी चाहिए। जब माहौल शांत हो जाए तो अपनी बात को आराम से कहनी चाहिए लेकिन जहां ऐसा नहीं होता वहा फिर हमेशा झगड़ा होता है। पड़ोसी भी सुन कर मजे लेते है।
जिनके अंदर संयम यानी पेशेंस नही है वो बहुत जल्दी झगड़ा करने पर उतारू हो जाता है। ऐसे लोग आगे या पीछे की सोचते ही नही। सब कुछ कर जाने के बाद सोचते है यार मैने झगड़ा गलत कर लिया था। शायद नहीं करना चाहिए था। अरे फिर ऐसे पछताने से क्या फायदा। इसलिए किसी की बात न पसंद आए तो भी संयम से काम लेना चाहिए। शांति से विचार करना जरूरी है। जब तक हम आपने परिवार के सदस्यों को ठीक से समझेंगे नही, उनके भावनाओ को समझेंगे नही तो उनके खुशियों का ध्यान कैसे रखेंगे।
जैसे ही आप सामने वाले की feelings को अच्छी से समझ जाते है तो उसका सम्मान भी करना शुरू कर देते है। उनके बातो का बुरा नही मानते है। उनके खुशी और नाराजगी वाले बातो का भी ध्यान रखते है। जिससे आपस में प्यार बढ़ता है और नोक झोंक न के बराबर होता है ।
आज इंटरनेट और सोशल मीडिया के होने से परिवार के लोग एक घर में होने के बावजूद भी आपस में बाते कम करने लगे है। जिसको देखो वो मोबाइल या लैपटॉप या फिर टीवी पर आंखे गड़ाए बैठा है। आपस में बात नही करेंगे तो एक दूसरे की feelings को क्या खाक समझेंगे। रिश्तों में दरार बनने की सबसे बड़ी वजह सोशल मीडिया का होना है। जो परिवार सोशल मीडिया पर ज्यादा ध्यान नहीं देता , वो लोग आपस में ज्यादा बातचीत करते रहते है जिससे उनके अंदर सामंजस्य बना रहता है। एक दूसरे का ख्याल रखते है। और ऐसे परिवारों में झगड़े होने की संभावना भी कम होते है।
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दोस्तों यहां मैं यह बिल्कुल नहीं कह रहा हु की आप मोबाइल, इंटरनेट या सोशल मीडिया का प्रयोग बंद कर दे, बिल्कुल कीजिए। लेकिन जैसे कुआ खोदा जाता है पानी पीने के लिए न की उसमे कूदकर जान देने के लिए। उसी प्रकार से इनका प्रयोग उतना ही करें जितना आपके जीवन को नुकसान न पहुंचा सके।
"सुन लेने से" कितने सारे सवाल सुलझ जाते हैं,
"सुना देने से"हम फिर से वहीं उलझ जाते हैं....!!
शादी के बाद पति पत्नी के बीच ego सबसे ज्यादा आ जाता है। एक दूसरे को समझने को तैयार ही नही होते। अगर एक कॉम्प्रोमाइज कर भी लेता है तो दूसरा नही करता है। जिससे सिर्फ उनके कारण घर में मनमुटाव का माहौल बना रहता है। हमेशा एक दूसरे के कामों में नुक्स निकालते रहते है और झगड़ते रहते है। सिर्फ नासमझी की वजह से कभी कभी रिश्ते इतने कमजोर हो जाते है कि तलाक तक की नौबत आ जाती है। लेकिन तलाक कोई समधान नही है । जब तक खुद में बदलाव नहीं लाया जाएगा, तब तक कुछ भी कर लो झगड़े समाप्त नहीं होने वाले। आज इस घर में, तो कल किसी और घर में।
याद रखिए -
"कभी घर बदलने से झगड़े खत्म नही होते ,
बल्कि उसके लिए खुद का स्वभाव बदलना पड़ता है।"
"कभी भी किसी समस्या का हल झगड़ा नहीं होता है।
बल्कि हर समस्या की शुरुआत झगड़ा जरूर होता है। "
दोस्तों कोई फायदा नही है आपस में लड़ने झगड़ने से। चार दिन की जिंदगी है उसमे से भी आधे समय सिर्फ लड़ने झगड़ने में निकाल दोगे तो फिर आधी जिंदगी ही जी पाओगे। इस जीवन का कुछ नही पता कब आंख बंद हो जाए और फिर कभी खुले ही न। जब अपने बहुत दूर चले जाते है तो सिर्फ पछताते ही रहते है की काश खुशी के साथ पल बिताए होते तो कितना अच्छा था। क्यों लड़ते झगड़ते दिन निकाल दिए। अभी भी वक्त है जो बीत गया सो बीत गया लेकिन ठान लो की अब आगे से झगड़ना बंद और खुशियों के साथ अपनो के साथ समय बिताओ। क्योंकि
"क्या पता कल हो ना हो। जो पल है उसे तो ठीक से जी लो।"
जो पल चला गया वो कभी लौट कर आने वाला नही। तो बस हर एक पल का भरपूर आनंद लीजिए।
जिनके पास अपने हैं,
वो अपनों से झगड़ते है...
जिनका कोई नहीं अपना,
वो अपनों को तरसते हैं..।
कल न हम होंगे न गिला शिकवा होगा
सिर्फ सिमटी हुई यादों का सिललिसा होगा।
जो लम्हे हैं चलो हंसकर बिता लें।
न जाने कल जिंदगी का क्या फैसला होगा।
दोस्तों आशा करता हूँ कि ये आर्टिकल आपको अच्छा लगा होगा। अपना कमैंट्स और शेयर करना ना भूले ।
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